मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘अगोरा’


बोर्रा….. अपन पुरता पोट्ठ हे। कई बच्छर के जून्ना खावत हे। थुहा अउ पपरेल के बारी भीतर चर-चर ठन बिही के पेड़…..गेदुर तलक ल चाटन नई देय। नन्दू के दाई मदनिया हर खाये- पीये के सुध नई राखय… उवत ले बुड़त कमावत रथे। नन्दू हर दाई ल डराय नहीं…। ददा बोर्रा हर आंखी गुड़ेरथे तभे नन्दू हर थोरथर भय खाथे। लइका के मया…सात धर के गोरस पियाये हे। दाई ए हर जानही मया पीरा ल, के कतका दु:ख-सुख म लइका ल अवतारे रथें। ढपकत बेरा ले कमा के फिरत मदनिया तो ओइरदा म बइठ के लाली कुरती के बटम ल छटका के टूरा ल ढेंटी ल धरा देय। चभक्का मार के पियत- पियत दाई के अउंसे गाल म ओरमे चून्दी ल चोचमय….। रोनहा टूरा… कठल जाये… दाई के मया ए…. फेर लुगरा के ओधा म सपटा के टूरा ल ढेंटी ल धरा देय…।

नन्दू हर बरिस पांचक के होइस ता ददा हर ओला स्कूल म भरती करिस। दु-चार दिन तो छोकरा हर मूंह ल ओरमाइस फेर पइधे बछरू कस हिले लगगे। पढ़त हे दाउ हर…बने चेत लमाके हे। संगी जउरिहा गंजहा, भुवन उदें अऊ मनबोधी संग कभू-कभू बांस डारा कस ओरम के झगरा होवै फेर एके घरि लपेटे तुमा नार कस मया म लपटा लावैं।

।। बिड़ी के सुवाद पियत भर ले।। तोला छोड़ौ नहीं संगी जियत भर ले।।

भइसा ल कोन चराही.. ? बोर्रा तो पेट पिरूवा ए। जब पेट पिरी हर उमड़ै तर तीनों लोक दिख जाये। चल…अठमी-नम्मी पढ़ डारिस दऊ हर अब नागर मुठिया धरे के थेभा होगे… गुन सोंच के ददा हर नान्हें ल पढ़ाए ल छोड़ा दिस। कहै…अँ…आजकल तो पढ़इया घला मन पर के बनी तो जावत हें नौकरी पाबो कथें अऊ टेक्टर जोतथें….

।।पहिरे हे फूलपेन्ट, पियत हे सिगरेट।।
।। खापे हे तसमा ल, खेलत हे किरकेट।।

आज के पढ़इया तो चिरी अंगरी के कटाये घला म मूतत नइए। पढ़ा सबले जादा बिगड़हा।। पढ़े लिखे बने करे.. चाल म तोर कीरा परे।। पढ़त हे रमायन पोथी, कीरा भरे हे भीतर कोठी।। नई जाने सेवा धरम के काएदा ता तोर पढ़े लिखे म का फायदा…। तभे तइहा के सियान मन कहैं- खेती अपन सेती…..। टूरा के थेारथार अऊ पढ़े के मन रहिस पर का करै….। ददा हर हाथ के कलम ल छोड़ाके मुठा के कलम म हिले लगा दिस। अइसे-तइसे दु-चार बरिस, ददा के हिले म खेती- किसानी होइस। नन्दू……सज्ञान होगे। दाई- ददा ल बिहाव करे के संसो.. अऊ का…लइका खोज के बढ़िया मजा से नन्दू के बिहा ल कर दिन…।

ददा तो कड़बिड़हा ए…दिन रात कटकिट-कइया करते रहै। फलाना बुता हर पई होवे ए। ढेकाना ल बिगाड़ डारे। अतका रोंट होगे तभो ले तोर चेत नई चढ़िस। मैं… अतकातार पढ़े रतेओं ता रमायन ल बाँच लेतेओं। जउरिहा बेटा… रात-दन के ठेवना ल सही का…..? सादा के कमीज, हाफपेंट पहिरे नन्दू हर घर ल सून्ना पाके एक दिन बिपटाए खार कती रेंग दिस। तहाँ ले फेर लहुट के खड़े-खड़े अगोरत हे। दाई हर सोवा परत ले पारा-परोस ल टवालीस। कस रे बठवा! नन्दू ल देखे हस का..? नन्दू के संगी गंजहा के दाई ल पूछिस:-कस ओ भूखीन! तोर घर….दाऊ आये रहिस का…? का जानी दाई… रोज तो आवै। आज तो तकाइस नहीं.. घर भीतर ले गंजहा कथे:-बिहना एके संग असनांदे गये रहेन। मनटूटहा रहिस। पूछें ता कहिस:- भइया! अब मैं उटबिटा गयेहों तोर भउजी हर कइसे करही। बच्छर भर होए नइए… कहत रो डारिस तहाँ मोरो आंखी डबडबा गे….।

बोर्रा हर छटके जोंधरी कस दांत ल गिजोर के मदनिया ल घुड़काथे। मुड़ म अऊ चढ़ा ना… गेदा तो नोहे, कहुँ, कती गये होहि ससुरार म…। आ जाही थोकिन दिन म…..। दुनों परानी थोरकन चोचमिक-चोचमा होइन। एक दिन नाहक गे…..दुसरावन दिन लग गे, बेटा के पता नइ ए। दस कोसी ल खोज डारिन। अब तो धीरे बानी करके महिना पुरत हे। दाई हर कलप-कलप के रोवे। पत्तो हर संकवा ल उवत ले दसना म बइठे-बइठे निहारत रहै के, मोर धनी हर फरिका ल उघार कही ता झट्ट ले उघार दिहौं… पर का करै बेचारी…दुनिया भर ल गुनै.. धँ बिहना आही, धँ…संझा आही…।

।। ऊँचे घर के नीचे डेहरिया चौखट लगे कपार।।
।।चारों खूंट म हीरा जड़े हे, धनी बिना अंधियार।।

अइसे-तइसे करके एक बच्छर नाहक गे। कई जगह इचार-विचार कराइन। देवता धामी ल अदना-बदना करिन पर अगम दहरा ए। ददा बोर्रा हर ढेंकी सांप अस, लहलहंग ले परे रहै। हाथी कस जांगर पचकगे। मुरब्बा कस चोभियाए मेछा, बड़ोरा म गिरे डारा कस ओरम गे। जउरिहा बेटा….नान कन गोठ ल सहे नइ सकिस अऊ बैरागी बन के एक मुक्खे कहां उछिन्द होगे। पटउहा कस अपन छाती ल पीट-पीट के पापी चोला ज धिक्कारै। पीटे पैरा कस ठकठक ले छाती होगे। झर्राए अरसी काड़ी कस मन… घर हर अइसे लगै जइसे कोनो तरिया पार के फुटहा मन्दिर… रात के सिरनियाए ले जीव ल तीरथे…।

सोला बरिस म सील घला खिया जाथे। रूखराई, गांवगोड़ा, डहरबाट तलक आने तकाथे। संझावाती के बेरा ए। गरूवा बछरू के टोंटा के घन्टी-टापर, धरसा कती ठिनीन-ठापर बाजत हे। रउत के ललकार, पनिहारिन के पैजन, लइका मन के किलिल-कालल हर बबा के मन ल हरत हे। जोगी मण्डल के आंठ म तीन झन गोदरिया… अपन डेरा जमा के मुंहा चाही करत हें। जोगला मन के दरशन करे बर गांव के दु-चार झन मनखे सकलाय लगीन। ओ… गली ती ले गिंजरत गंजहा हर कथे:-जोहार महराज! जय हो.. बइठो। का बइठी महराज! तुम्हारे जैसे तो हम भी रमता जोगी बहता पानी हो गया है। इधर गली से उधर गली….। लेकिन तुम्हारे जैसे, चिकारा नहीं बजाते। तहां ले गंजहा… लकठा म बइठ के गोदरिया ल निचट निहारिस। गोदरिया के गोठ अऊ मुंहरन ल ओरखत हे। नन्दू कस लागथस बबा, जून्ना संगवारी, नानपन के….। काबर गोदरिया बने यार…..भौजी ल छोड़ के। अरे…..बस…..दाऊ, जादा पी लिया है का…? हम नान्दू सान्दू नाही…। काबर छलथस महराज… पक्का नन्दू अस…।

अऊ का… गांव भर सोर होगे के, बोर्रा के बेटा नन्दू हर गोदरिया बनके सोला बरिस म अपन गाँव ओथरे हे। सिगीर- बिगीर मनखे… नन्दू के नांव ले गांव म रकम-रकम के गोठ होवत हे। अरे ओइच्च ए… नाक ल देख ना…नन्दू तो आय दाई…मदनिया सुनीस ता पिलोरही गाय कस हंफरत-चोकरत दौड़िस। देखथे जोगड़ा मन ला ता अधकटा पेड़ कस ठड़ा होके बमफार के रो डारिस। एती ले भोसकत बीड़ा कस बोर्रा घला ढुलत आइस। ताकपाक ल उवाटत गुनथे- हां! नन्दू अनुहार तो हे पर …थोकन भसभस…अइसे मोर बेटा के दांत-दाड़ी नइ रहिस दिखे ल तो दिखत हे…अइसे गुनत आंट के रेंगान म रूपया हजाए बनिया कस बइठ गे ।

एती बेरा हर गांसा म जरियावत हे। सब्बे मनखे बसंती पान कस झरत गइन। मदनिया अऊ बोर्रा ल अइसे छोड़ दिन जइसे मरदेवा ल छोड़ के जाथें। डोकरा मुहा गोदरिया हर कथे- तुम्हीं लोग भी जाओ ना… सब तो चल दिये, काहे बइठे हो। तहां मदनिया रो डारिस। अरे- अरे…काहे रोवत हो ? नहीं बबा ! ए हर मोर नन्दू बेटा ए। मोर सात चानी करम फाटगे। बेटा हर न ओझियावत ए, न बतरावत ए। सोला बरिस होगे, घर ले निकरे हे। नाहिन माता जी! कोनो तुम्हार बेटवा नाहीं। ए तो गोरखनाथ बाबा का बच्चा है। तुमको भ्रम हो रहा है। तब बोर्रा हर दुनों हाथ ल जोर के कथे:-एहर मोर लइका ए। मोर करेजा के फारी ए। एला छोड़ दौ… बहू बेचारी ठाड़ ससुरार म लछिमन जती के परानी उरमिला कस ठाढ़ बुढ़ागे। बेचारी कलप-कलप के रोवत हरियर काया ल सेंसा कर डारिन। छोड़ देते ता छोइला ठाठ हरिया जातीस। कतको पैसा लगै, देहे ल तियार हों… बेटा ल छोड़ दे महराज! तोर पांव परत हौं कहत बमफार के रो डारिस।

अतका गोठ ल सुन के तीनों गोदरिया मन मुंहिक-मुंहा होइन। एक झन हर कथे:- सवा लाख देना पड़ता है बाबा जी को… भण्डारा में जमा होता है फिर तुम्हारा बच्चा मिल जायेगा। ठीक हे बबा! मैहर देहे ल तियार हों…।

गोदरिया मन पन्द्रा दिन गांव म फेरा लगाइन। आखरी के दिन बोर्रा अऊ मदनिया, जिंदगी भर के जोरे पैसा ल बबा मन के चरन म ला के मढ़ा दिन। देख बिटिया छै माही के भीतर हम लौटत ही…. भण्डारा में पैसा जमा हो जायेगा फिर तुम्हारा बेटा वापिस हो जायेगा। पन्द्राही बर बबा मन के डेरा उसलगे। छै: महिना के चटपटी परे हे के बबा मन मोर बेटा ल फिरो के लानहीं। तरिया- पोखर जाये ता खचीत जोगी मण्डल के आंट ल निहारै धन मोर हीरा आये होही… पर ओकर अटके हे। अच्छा पोल पाइन…. ठग के लेगिन।

मदनिया हर बेटा के अगोरा म निहारत-निहारत आंखी के जम्मो आंसू ल निचो डारिस। अब तो सत्तर बरिस ले खसलत हे। बोर्रा बबा, बावन-तिरपन म माटी म गड़ गिस। डोकरी के आसरा के गंगा दुबी म धोखा के हेंवार बरिस गे। सुख म सेवत गरा ल हरहा बइला हर खूंद दिस। अंचरा के मया अऊ जिंदगी भर के सकेले पूंजी सिरागे बेटा के अगोरा म…. जिंदगी भर रोवत हे। रोवत-रोवत कुसियार कस सेंसा, शरीर अउंट गे। अब तो छोइला हर बाँचे हे। खंड म आ गे हे। सुखाये डबरा कस आंखी रोवै ता रोवै कामा… अगोरा के सुध ल तभे भुलाही जब ए छोइला हर माटी म गड़ही………।

अगोरा के रस्दा अंखरी नइए।
अंखरी हे श्वासा के डोरी…….. कब पट्ट ले टूट जाही………..।
मरत-मरत जीयत हे, बिरहा के पीरा ल पसिया कस पियत हे।।

सांसी ले पझरत हे, छिन-छिन पानी
जून्ना हउंला कस होगे जिंदगानी …………………

मंगत रविन्द्र

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One Thought to “मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘अगोरा’”

  1. बहुत अर्थपुर्ण अऊ भावप्रधान कहिनी हे मंगत जी आपके विरनन अऊ उपमान गजब हे !! जुन्ना हऊला कस होगे जिंगानी -सहीच काहत हव !!आपके पहिली कहानी दोना ल घलो आजेच्च पढेव !! मन खुश होगे !!

    ऐसन भाव प्रधान कहिनी बर आप ला अऊ गुरतुर गोठ ला बधई

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